Wednesday, October 17, 2007

मेरी कविता २

कुछ बात कह दो
कुछ खास ना सही, कुछ बकवास ही कह दो
काहे को मुह फुलाए बैठे हो
चांद की ना सही तारो की हे बात कह दो

खामोशी से डर लगता है मुझे ,
मेरे दिल की ना सुनो पर
अपने दिल की ही बात कह दो

बोल न सको किसी झिझक से
किसी डर से या
किसी और कारण से तो
झुका के नजरे धीरे से आंखों से आंखो की बात ही कह दो

मैं ये नहीं कहता कि
गुमनाम या बेआवाज है मेरी शायरी
शायराना अंदाज न सही
रूखी बातों मे ही वो बात कह दो

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